लेखनी कविता - घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता - ग़ालिब

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घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता / ग़ालिब घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है ...

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